अचेतन की प्रवृतियाँ
'समय चुकि पुनि का पछिताने; का वर्षा जब कृषि सुखाने' - तुलसी बाबा की यह चौपाई बड़ी मार्मिक है और हम सभी के जीवन में बार-बार चरितार्थ होती रहती है। यह अलग बात है कि तब भी हम इसे समझ पाने में अक्षम-असमर्थ बने रहते हैं और वही करते हैं, जो हमारी आदत है। अचेतन की प्रवृतियाँ, आदतें, संस्कार हमारी चेतना पर इस कदर हावी रहते हैं, कि उचित समय पर उचित काम करने का होश ही नहीं आता। सब कुछ यों ही जिंदगी से छटता-खिसकता चला जाता यों। देर में होश आया भी तो क्या, तब तक देर इतनी हो जाती है कि बिगड़ा हुआ काम किसी भी तरह से नहीं बनाया जा सकता।
'Time is over, I regret it; The rain of when agriculture dries up - This quadruped of Tulsi Baba is very poignant and is repeated again and again in the lives of all of us. It is a different matter that even then we remain incapable-incapable of understanding it and do what is our habit. The tendencies, habits, rites of the unconscious dominate our consciousness in such a way that we do not have the sense to do the right thing at the right time. Everything just keeps slipping away from life. Even if the senses come in late, by then it is too late that the spoiled work cannot be made up in any way.
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...