परम तत्व
प्रेम में सारे गुण स्वतः ही समाए रहते हैं अथवा यों कहा जाए कि यहाँ सारे गुण विलीन हो, निर्गुणत्व पा लेते हैं। इसी स्थिति को स्पष्ट करते हुए नारद भक्ति सूत्र में सः हि अनिर्वचनीयो प्रेमरूपः कहकर परमेश्वर को प्रेम रूप घोषित किया है। यही परम तत्व है। इसी का बोध होने में ज्ञान की सार्थकता है। इसी आशय को संत कबीर साहेब अपनी वाणी में कहते हैं, ढाई अक्षरों में निहित प्रेम के दुर्जेय तत्व के बोध को प्राप्त कर लेने में ही पांडित्य की सार्थकता है।
All the qualities are automatically absorbed in love or rather it is said that here all the qualities dissolve, they attain Nirguntva. Clarifying this position, in the Narada Bhakti Sutras, by saying sah hi anirvachaniyo prem rupah, the Supreme Lord has been declared as the form of love. This is the ultimate essence. To realize this is the meaning of knowledge. Sant Kabir Saheb says in his speech, the meaning of erudition is only in attaining the realization of the formidable element of love contained in two and a half letters.
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...