सुकरात के संबंध में कहते हैं, जब भी वे कोई वस्तु खरीदते अपने आप से यह प्रश्न करते हैं कि क्या इस वस्तु के बिना मेरा काम नहीं चल सकता है ? यदि उत्तर में हाँ में मिलता तो वे खरीदते; अन्यथा उस विचार को छोड़ देते थे। कम साधनों में निर्वाह गौरव और गरिमा की बात है; यह दृष्टिकोण विकसित किया जा सके तो न अभावों की समस्या रह जाती है और न किसी बात की कमी होने की शिकायत रह जाती है।
In relation to Socrates, it is said, whenever they buy something, they ask themselves, can my work go on without this item? If the answer was yes, they would have bought; Otherwise they would have given up on that idea. Living in meager means is a matter of pride and dignity; If this approach can be developed, then neither the problem of scarcity remains nor the complaint of lack of anything remains.
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महर्षि दयानन्द की निष्पक्षता महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में लिखा है कि यद्यपि मैं आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुआ और बसता हूँ, तथापि जैसे इस देश के मत-मतान्तरों की झूठी बातों का पक्षपात न कर यथातथ्य प्रकाश करता हूँ, वैसे ही दूसरे देशस्थ व मत वालों के साथ भी वर्तता हूँ। किसी वीतराग संन्यासी के इन शब्दों से यह...
महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...