महर्षि दयानन्द की निष्पक्षता
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में लिखा है कि यद्यपि मैं आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुआ और बसता हूँ, तथापि जैसे इस देश के मत-मतान्तरों की झूठी बातों का पक्षपात न कर यथातथ्य प्रकाश करता हूँ, वैसे ही दूसरे देशस्थ व मत वालों के साथ भी वर्तता हूँ।
किसी वीतराग संन्यासी के इन शब्दों से यह भ्रम हो जाना स्वाभाविक है कि ऐसा संन्यासी देश विदेश के लिए अधिक क्या लिखेगा? सत्यार्थप्रकाश की भूमिका में लिखे इस भ्रम का निराकरण सहज ही हो जाता है, जब हम तत्कालीन ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज के कार्यों पर लेखक के विचार पढते हैं।
Maharishi Dayanand Saraswati has written in the preface of Satyarth Prakash that although I was born and live in Aryavart, yet just as I do not favour the false things of the different religions of this country and reveal the true facts, I also interact with people of other religions and countries.
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...