आनंद और उल्लास से भरे जीवन को जीने के बजाय हम दिन-दुःखियों-सा जीवन जी रह हैं, पर यदि हमें इन दुःखों से सर्वदा के लिए मुक्त होकर परम आनंद की उपलब्धि करनी है तो हम वर्तमान में जिस स्थिति में जी रहे हैं, जिस स्तर का जीवन जी रहे हैं, उसे ऊपर बहुत ऊपर हमें उठ जाना होगा, पर साथ ही यह जानना भी बहुत आवश्यक होगा कि जाना होगा कहाँ ? मनुष्य जिस भगवान का अंश है; मनुष्य के अंदर जिस भगवान की चिंगारी है; मनुष्य जिस भगवान के द्वारा देवदुर्लभ मानव तन पाकर धरती पर आया है और जिस भगवान से वियुक्त होने के कारण अनेक क्लेशों व दुखों को भोग रहा है, मनुष्य को उस भगवान के साथ ज्ञानपूर्वक युक्त होगा; भगवान के सत्-चित्-आनंदस्वरूप में स्वयं को चिरप्रतिष्ठित करना होगा।
Instead of living a life full of joy and gaiety, we are living a life of sorrows, but if we want to achieve ultimate bliss by getting rid of these sorrows forever, then the situation in which we are living in the present. We are living a standard life, we have to rise above it very much, but at the same time it will be very important to know that where to go? The God of whom man is a part; The spark of God within man; The God through whom man has come to earth after getting a rare human body and is suffering from many sorrows and sorrows due to separation from the God, man will be consciously associated with that God; One has to establish himself in the Sat-Chit-Anand form of God.
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...