एक कुशल मूर्तिकार की तरह, हम अपने बच्चों को मनचाहा रूप प्रदान कर सकते हैं। बच्चों के मित्र बनकर ही हम उन्हें मनचाहा आकार दे सकते हैं। बच्चों में दिव्य संस्कारों, विचारों का उनके जीवन पर कितना व्यापक असर होता है। हम स्वयं के साथ-साथ बच्चों में शुभ संस्कारों, विचारों, आदतों के बीज बोते रहें। उनमें शुभ भावनाएँ भरते रहें। उनमें दिव्य गुणों के बीज बोते रहें। एक-न-एक दिन वे बीज उनके भीतर से वृक्ष बनकर, वटवृक्ष बनकर अवश्य ही प्रकट होंगे; जिससे वे स्वयं निहाल तो होंगे ही व औरों को भी नई रोशनी, नई राह दिखा सकेंगे।
Like a skilled sculptor, we can give our kids the look they want. By becoming friends of children, we can give them any shape we want. How wide is the effect of divine rites, thoughts in children on their lives. May we keep sowing seeds of good values, thoughts, habits in ourselves as well as children. Keep filling good feelings in them. Keep sowing the seeds of divine virtues in them. One day or the other, those seeds will surely appear from within them as a tree, a banyan tree; By which they will not only be happy themselves and will also be able to show a new light and a new path to others.
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...