पवित्र गौ का हनन मत करो - २
यजुर्वेद के प्रथम ही मंत्र में परमात्मा की आज्ञा है कि 'अघ्न्या यजमानस्य पशुन पाहि' है पुरुष ! तू इन पशुओं को कभी मत मार और यजमान अर्थात् सबको सुख देने वाले जनों के सम्बन्धी पशुओं की रक्षा कर, जिनसे तेरी भी पूरी रक्षा होव। और इसीलिए ब्रम्हा से लेके आज पर्यन्त आर्य लोग पशुओं की हिंसा को पाप और अधर्म समझते थे और अब भी समझते हैं और इनकी रक्षा में अन्न भी महंगा नहीं होता क्योंकि दूध आदि के अधिक होने से दरिद्री को भी खानपान में मिलने पर न्यून ही अन्न खाया जाता है और अन्न के कम खाने से मल भी कम होता है। मल के न्यून हों से दुर्घन्ध भी न्यून होती है, दुर्घन्ध के कारण स्वल्प होने से वायु और वृष्टिजल की शुद्धि भी विशेष होती है, उससे रोगों की न्यूनता होने से सबका सुख बढ़ता है।
इसमें यह ठीक है कि गौ आदि पशुओं के नाश होने से राजा और प्रजा का भी नाश हो जाता है क्योंकि जब पशु न्यून होते हैं तब दूध आदि पदार्थ और खेती अदि कार्यों की भी घटती होती है। देखो ! इसी से जितने मूल्य से जितना दूध और घी आदि पदार्थ तथा बैल आदि पशु ७०० (सात सौ) वर्ष पूर्व मिलते थे, उतना दूध, घी और बैल आदि पशु इस समय दशगुणों मूल्य से भी नहीं मिल सकते, क्योंकि ७०० वर्ष के पीछे इस देश में गवादि पशुओं को मारने वाले मांसाहारी विदेश मनुष्य बहुत आ बसे हैं। वे उन सर्वोपकारी पशुओं के हाड़-माँस तक भी नहीं छोड़ते तो 'नष्टे मुले नैव पत्रं न पुष्पं' - जब कारण का नाश कर दे तो कार्य नष्ट क्यों न हो जावे? हे मांसाहारियो ! तू लोग जब कुछ काल के पश्चात पशु न मिलेंगे तब मनुष्यों का मांस भी छोड़ेगे वा नहीं? हे परमेश्वर ! तू क्यों इन पशुओं पर, जो बिना अपराध मारे जाते हैं, दया नहीं करता? क्या उनके लिए तेरी न्यायसभा बंद हो गई है ? क्यों उनकी पीड़ा छुड़ाने पर ध्यान नहीं देता इन मांसाहारियों के आत्माओं में दयाप्रकाश कर निष्ठुरता, कठोरता, स्वार्थपन और मूर्खता आदि दोषों को दूर नहीं करता जिससे वे इन बुरे कामों से बचें?
इससे हे धार्मिक सज्जन लोगो। आप इन पशुओं की रक्षा तन मन अरु धन से क्यों नहीं करते ? हाय ! बड़े शोक की बात है जब हिंसक लोग गाय-बकरे आदि पशु और मोर आदि पक्षियों को मारने के लिए ले जाते हैं, जब वे अनाथ तुम-हमको देखके राजा और प्रजा पर बड़े शोक प्रकाशित करते हैं कि देखो हमको बिना अपराध, बुरे हाल से मारते हैं और हम रक्षा करने तथा मारने वालों को भी दूध-घृत आदि अमृत पदार्थ देने के लिए उपस्थित रहना चाहते हैं मारे जाना नहीं चाहते। देखो, हम लोगों का सर्वस्व परोपकार के लिए है कर हम इसलिए पुकारते हैं कि हमको आप लोग बचावे ? हम तुम्हारी भाषा में अपना दुःख नहीं समझा सकते और आप लोग हमारी भाषा नहीं जानते, नहीं तो क्या हममें से किसी को कोई मारता तो हम भी आप लोगों के सदृश अपने मारने वालों को न्यायव्यवस्था से फाँसी चढ़ावा देते। हम इस समय अतीव कष्ट में हैं क्योंकि कोई भी हमको बचाने में उद्दत नहीं होता है और जो कोई हतो है उससे मांसाहारी द्वेष करते हैं।
ध्यान देकर सुनिये कि जैसा दुःख-सुख अपने को होता है वैसा ही औरों को भी समझा कीजिए। और या भी ध्यान में रखिये कि वे पशु आदि और उनके स्वामी तथा खेती-बाड़ी करने वाले राजा के पशु आदि और मनुष्यों के अधिक पुरुषार्थ ही से राजा का ऐश्वर्य अधिक बढ़ता और न्यून से नष्ट हो जाता है। इसलिए राजा प्रजा से कर लेता है कि उनकी रक्षा यथावत करे, न कि राजा और प्रजा के सुख के कारण गाय आदि पशु हैं उनका नाश किया जावे। इसलिए आजतक जो हुआ, सो हुआ आगे आँखे खोलकर सब हानिकारक कर्मों को न कीजिए और न करने दीजिए। हां, हम लोगों का यही काम है कि आप लोगों की भलाई और बुराई के कामों को जता देवें। और आप लोगों का यही काम है कि पक्षपात छोड़ सबकी रक्षा करे कि जिससे हम और आप लोग विश्व के हानिकारक कर्मों को छोड़ सर्वोपकार कर्मों को करके सब लोग आनन्द में रहें। इन सब बातों को सुन मत डालना किन्तु सुन रखना। इन अनाथ पशुओं के प्राणों को शीघ्र बचाना।
है मराजाधिराज जगदीश्वर ! जो इनको बचावें न तो आप इनकी रक्षा करने और हमसे कराने में शीघ्र उद्दत हूजिये। अंत में हमारा अपनी सरकार से यही कहना है कि - जैसे पक्षियों में मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित करके उसकी रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लिए है, उसी प्रकार अविलम्ब पशुओं में गो-पशु को राष्ट्रीय पशु घोषित करके राष्ट्र की समृद्धि का पथ प्रसस्त करे और प्रजा का स्नेह एवं परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करें। - जगरूपसिंह छिक्कारा आर्य
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O non-vegetarian! When you people will not get animals after some time, then the flesh of humans will also be left or not? Oh my god Why do not you pity these animals, who are killed without crime? Is your judiciary closed for them? Why does not heed to relieve their suffering, by giving mercy to the souls of these carnivores, to remove the defects of ruthlessness, harshness, selfishness and stupidity, so that they avoid these evil deeds?
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...