पवित्र गौ का हनन मत करो - १
प्राचीन भारत में गौ-धन मुख्य धन था। यहां की उस समय की गौ संख्या चकित करने वाली थी। जो सहायक गवालों के साथ ९ लाख गौओं का पालन करे उसे नन्द कहते थे और जो पांच लाख गौओं को पाले उसे उपनन्द कहते थे। जो दस लाख गौओं का पालन करें उसे वृषभानु कहते थे और जिसके घर एक करोड गौओं का संरक्षण हो उसे नन्दराज कहते थे।
चीनी यात्री मेगस्थनीज ने ''इंडिका'' में लिखा है कि चन्द्रगुप्त के समय भारत की जनसंख्या १९ करोड़ थी और गौओं ३६ करोड़ थी अकबर के समय भारत की जनसंख्या २० करोड़ थी और गौओं की संख्या २८ करोड़ थी। सन १९४० में जनसंख्या ४० करोड़ थी, गौओं की संख्या पौने पांच करोड़ जिनमे से जिनमे से डेढ़ करोड़ युद्ध के समय मारी गई।
भारत में गोधन का ह्वास किस प्रकार हुआ, यह सन १९४० की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार निम्न प्रकार है- सन १९२० में ४ करोड़ ३३ लाख ६० हजार गौएं थीं। वे सन १९४० में ३ करोड़ ९४ लाख ६० हजार रह गई। प्रत्येक दूरदर्शी नेता ने भारत की दशा सुधारने के लिए गोसंरक्षण और गो-संवर्धन को आवश्यक बताया है। महर्षि दयानन्द जी महाराज ने देश की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए जहां शिल्पशिक्षा को आवश्यक समझकर भारतीयों को जर्मनी भेजकर शिल्प सीखना चाहा, वहां कृषि और स्वास्थ्य की दृष्टि से गो-संरक्षण को भी बहुत महत्त्व दिया। पूना के भाषण में उन्होंने कहा था कि देश में गोधन क्षीण हो रहा है और एक अच्छा बैल २५ रुपये का आता है। ऋषि उस समय २५ रूपये के बैल को बहुत महंगा बता रहे थे, किंतु स्वाधीन भारत में तो अब १५०० रूपये का बैल भी नहीं आता।
ऋषि ने गोवध पर प्रतिबंध लगाने की मांग के लिए महारानी विक्टोरिया के पास बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों के हस्ताक्षरों से प्रार्थनापत्र भेजने का भी विचार किया था। देश में जनजागृति के लिए 'गोकृष्णादिरक्षिणी' सभा की स्थापना की थी। ''गोकरुणानिधि'' नाम से एक महत्वपूर्ण पुस्तिका लिखी, उसमें सामान्यतया सभी दुधारू पशु भैंस, भेड़ आदि की रक्षा की भी वकालत की, किन्तु सबसे अधिक जोर गोरक्षा पर दिया है। महर्षि ने लिखा है- जैसे ऊंट-ऊंटनी से लाभ होते हैं वैसे घोड़े-घोड़ी और हाथी अदि से अधिक कार्य सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार सूअर, कुत्ता, मुर्गा, मुर्गी और मोर आदि पक्षियों से भी अनेक उपकार होते है। जो मनुष्य हिरन और सिंह आदि पशु और मोर आदि पक्षियों से भी उपकार लेना चाहें तो ले सकते हैं परन्तु सबका पालन उत्तरोक्त समयानुकूल होवेगा। वर्तमान में परमोकारक गौ की रक्षा मुख्य तात्पर्य है। दो ही प्रकार से मनुष्य आदि की प्राणरक्षा, जीवन, सुख, विद्या, बल और पुरुषार्थ आदि की वृद्धि होती है - एक अन्नपान, दूसरा आच्छादन। इनमें से प्रथम के बिना मनुष्यादि का सर्वथा प्रलय और दूसरे के बिना अनेक प्रकार की पीड़ा होती है।
देखिये जो पशु निःसार घार, तृण-पत्ते, फूल-फल आदि खावें और सार दूध आदि अमृतरूपी रत्न देवें, हल गाड़ी में चलके अनेकविध अन्न आदि उत्पन्नकर सबके बुद्धि, बल-पराक्रम को बढ़ाके नीरोगता करें, पुत्र-पुत्री और मित्र आदि के समान पुरुषों के साथ विश्वास और प्रेम करें, जहां बांधे वहीँ बंधें रहें, जिधर चलावें उधर चलें, जहां से हटावे वहां से हट जावें, देखने और बुलाने पर समीप चले आवें, जब कभी व्याघ्रादि पशु वा मारने वाले को देखें, अपनी रक्षा के लिए पालन करने वाले के समीप दौड़कर आवें कि हमारी रक्षा करेगा।
जिनके मरे पर चमड़ा भी कंटक आदि से रक्षा करें, जंगल में चरके अपने बच्चे और स्वामी के लिए दूध देने को नियत स्थान पर चले आवें, अपने स्वामी की रक्षा के लिए तन-मन लगावें, जिनका सर्वस्व राजा और प्रजा आदि मनुष्यों के लिए है इत्यादि शुभगुणयुक्त सुखकारक पशुओं के गले छुरों से काटकर जो मनुष्य पेटभर, सब संसार में उनसे भी अधिक कोई विश्वासघाती, अनुपकारों, दुःख देने वाले और पापी जन होंगे? - जगरूपसिंह छिक्कारा आर्य
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Whose dead should protect the skin from thorns etc., go to the appointed place to feed milk for your child and lord in the forest, devote whole-heartedness to protect your lord, who is always the king and subjects etc. for humans. Etc. By cutting the throats of the well-pleasantly pleasurable animals, who will be more unfaithful, doers, sorrowers and sinners than those who are full of stomachs?
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महर्षि दयानन्द ने महिलाओं की शिक्षा पर सदैव बल दिया तथा बाल विवाह का घोर विरोध किया। प्राचीन आर्ष गुरुकुल प्रणाली और शिक्षा पद्धति का गहन अध्ययन व विश्लेषण करके ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास इन चारों आश्रमों के पालन पर बल दिया। उनका सम्पूर्ण जीवन व कृतित्व आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था।...
स्वयं से संवाद स्वयं से स्वयं के संवाद की जब स्थितियां नगण्य होती हैं तो नकारात्मकता देखने को मिलती है और भूलें बार-बार दोहरायी जाती हैं। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं, जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं और वर्तमान में भी ऐसे लोगों का वर्चस्व बढ ही रहा है।...